देश के सबसे लोकप्रिय शो ‘आप की अदालत’ में बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा के कई सवालों का सामना किया। ‘आप की अदालत’ में रजत शर्मा ने उनसे पूछा कि ‘कुछ लोग आपको पीठाधीश्वर मानते हैं, गुरु, महाराज या संत मानते हैं, लेकिन आप जिस भाषा का उपयोग करते हैं वो साधु की भाषा तो नहीं हो सकती नहीं लगती। रजतजी ने उदाहरण भी बताया कि ब्राह्मण समाज पर कमेंट करने वाले एक व्यक्ति को आपने कहा कि ‘मूर्ख ठठरी के बरे नकट्ट’। तो ये ठठरी क्या होता है?
‘कोई भगवान को गाली दे और हम उसे श्रीमान कहें, यह तर्कसंगत नहीं’
इस सवाल पर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि यह हमारे बुंदेलखंड का भावनात्मक शब्द है ठठरी। जब माताएं आवेश में होती है, बच्चा कोई गलती कर देता है, तो माताएं कहती हैं कि ‘अरे ठठरी के बरे सुधर जा…’। हम गांव के भोले भाले हैं, अनपढ़ हैं, ठीक से पढ़ाई तो की नहीं।
तो जो पारिवारिक बोलचाल है उसमें यदि कोई साधु, भगवान या रामचरित मानस पर टिप्पणी करेगा या उंगली उठाएगा तो स्वभाववश सनातनी हिंदू होने के नाते वह लहजा निकल जाता है। इसमे कौनसी गलत बात है। कोई भगवान को गााली दे और हम उसे श्रीमान कहें, तो ये तो न्यायसंगत नहीं है।
रजतजी के सवाल पर शास्त्रीजी ने बताया कि कथावाचकों को पाखंडी कहने वालों के लिए यही कहना है कि सभी कथावाचक पाखंडी नहीं हो सकते हैं। इसलिए किसी ने सभी कथावाचकों के लिए पाखंडी शब्द का उपयोग किया था, इसीलिए मैंने उसे ‘मसल देने’ वाली बात कही थी।