नई दिल्ली। लगातार गहराता जा रहा रूस-यूक्रेन युद्ध और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की दादागीरी से दुनिया त्रस्त आ गई है। इस समस्या के तत्काल समाधान के लिए जर्मनी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद मांगी है। भारत ऐसा देश है, जिसकी साख पीएम मोदी के नेतृत्व में पूरी दुनिया में अलग पहचान बना चुकी है। लिहाजा विश्व को भारत से बड़ी उम्मीदें हैं। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज इस मसले पर पीएम मोदी से मिलने अगले दो-तीन दिनों में भारत दौरे पर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री के साथ वार्ता में वह इन मुद्दों पर समाधान का सुझाव लेने के साथ ही साथ भारत का समर्थन मांगेंगे।
भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन ने बुधवार को कहा कि इस सप्ताह के अंत में जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच वार्ता होने जा रही है। इसके एजेंडे में रूस-यूक्रेन संघर्ष और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता प्रमुख विषय होंगे। उन्होंने कहा कि जर्मनी ने यूक्रेन में युद्ध को तत्काल समाप्त करने और वहां स्थायी शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक प्रस्ताव के समर्थन के लिए भारत से भी संपर्क किया है। जर्मन चांसलर की दो दिवसीय भारत यात्रा शनिवार को शुरू होगी और इस दौरान उनका जोर व्यापार, जलवायु परिवर्तन, स्वच्छ ऊर्जा और कुशल जनशक्ति जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर रहेगा। इसके अलावा वह वैश्विक चुनौतियों पर भी विचार-विमर्श करेंगे।
जर्मन चांसलर के एजेंडे में रूस-यूक्रेन युद्ध सबसे ऊपर
एकरमैन ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, “जर्मन चांसलर शोल्ज और प्रधानमंत्री मोदी के बीच मुलाकात में हम रूस-यूक्रेन युद्ध को एजेंडे में बहुत ऊपर देखते हैं। यह एजेंडे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा।” मौजूदा अंतरराष्ट्रीय स्थिति को ‘बहुत मुश्किल’ बताते हुए एकरमैन ने कहा कि जर्मनी इन मुद्दों पर विचार करने में भारत को ‘बहुत प्रभावशाली और मूल्यवान भागीदार’ मानता है। उन्होंने कहा, ‘‘हम यूक्रेन को अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए मदद जारी रखेंगे। रूस पश्चिम की एकता और रणनीतिक धैर्य से चकित है।” यह पूछे जाने पर कि क्या हिंद-प्रशांत सहित अन्य क्षेत्रों मे चीन के आक्रामक व्यवहार का मुद्दा वार्ता में शामिल होगा, उन्होंने कहा कि यह विषय भी एजेंडे में शीर्ष पर रहेगा। यह पूछे जाने पर कि भारत अगर यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के आगामी प्रस्ताव का समर्थन नहीं करना तो क्या यह जर्मनी के लिए निराशाजनक होगा, राजदूत ने कहा कि इस संबंध में फैसला भारत को करना है।
उन्होंने कहा, “मतदान में भाग लेन या उससे दूर रहना – किसी भी देश का संप्रभु फैसला है। हमने भारतीय पक्ष से संपर्क किया है और हम नहीं जानते कि आज रात उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी।’’ भारत द्वारा रूस से रियायती दर पर कच्चे तेल की खरीद के बारे में पूछे जाने पर एकरमैन ने कहा कि जर्मनी का इससे कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के मंगलवार के राष्ट्र के संबोधन का हवाला देते हुए कहा कि जर्मनी इस संकट का समाधान खोजने में भारत की भूमिका देखना चाहता है, लेकिन इस स्तर पर नहीं।
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