Supreme court decision maharashtra political issue shivsena uddhav eknath shinde | महाराष्ट्र के सियासी मसले पर असमंजस में सुप्रीम कोर्ट! 7 जजों की बेंच बनाने पर फैसला आज

सुप्रीम कोर्ट- India TV Hindi
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नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियों के मामले को 7 जजों की बेंच को भेजने को लेकर आज आदेश सुनाएगा। 2016 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एक फैसला सुनाया था जिस पर सुप्रीम कोर्ट के जज अब असमंजस में पड़ गए हैं। अरुणाचल प्रदेश के नबाम-रेबिया मामले में कोर्ट ने कहा था कि अगर विधानसभा अध्यक्ष को हटाने की याचिका पहले से लंबित है तो वह विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं ले सकते हैं। महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट से जुड़े मामले की सुनवाई कर रहे जज अब यह निर्णय नहीं कर पा रहे हैं कि इसे जारी रखा जाए, संशोधित किया जाए या खत्म कर दिया जाए। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दोनों पहलू पर फैसला करना एक बेहद पेचीदा संवैधानिक मसला बन चुका है। इसका बड़ा असर होगा।

2016 में सुप्रीम कोर्ट ने एक सुनवाई के बाद अरुणाचल प्रदेश में न केवल कांग्रेस सरकार को बहाल करने का आदेश दिया था बल्कि स्पीकर के 14 विधायकों को अयोग्य ठहराने के फैसले को पलट दिया था। उस वक्त 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि अध्यक्ष को अयोग्य ठहराने की कार्यवाही तब शुरू नहीं की जा सकती जब उन्हें हटाने का प्रस्ताव लंबित हो। यह फैसला एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले बागी विधायकों के बचाव में आया था जो अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं। ठाकरे गुट ने उनकी अयोग्यता की मांग की थी, जबकि महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि सीताराम को हटाने के लिए शिंदे गुट का एक नोटिस सदन में लंबित था।

सुप्रीम कोर्ट में शिवसेना (उद्धव गुट) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच के सामने तर्क दिया कि सरकारों को गिराने के लिए विधायक दल के भीतर फेरबदल संविधान की 10अनुसूची के विपरीत है। सिब्बल ने कहा, ‘यह आज का मामला नहीं है। यह कल का भी सवाल नहीं है। यह मुद्दा बार-बार उठेगा, जब चुनी हुई सरकारें गिराई जाएंगी। दुनिया का कोई लोकतंत्र ऐसा करने की अनुमति नहीं देता। इसलिए कृपया इसे अकादमिक सवाल न कहें।’ शीर्ष अदालत ने मामले को बड़ी पीठ के समक्ष भेजने को लेकर फैसला सुरक्षित करते हुए कहा था कि एक पहलु पर विचार किया जाएगा कि क्या वर्ष 2016 का नबाम रेबिया का फैसला ऐसे सभी मामलों पर लागू होगा। 

शिवसेना नेतृत्व से बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे गुट का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि वर्ष 2016 का नबाम रेबिया का फैसला सही कानून था और इस मामले को बड़ी पीठ को भेजने का कोई कारण नहीं है। वर्ष 2016 में अरुणाचल प्रदेश के नबाम रेबिया के मामले पर फैसला करते हुए पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला दिया था कि विधानसभा अध्यक्ष विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए दी गई अर्जी पर कार्यवाही नहीं कर सकते अगर उन्हें (विधानसभा अध्यक्ष) को हटाने के लिए पहले से नोटिस विधानसभा में लंबित हो। इस फैसले से एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले बागी विधायकों को राहत मिल गई थी क्योंकि ठाकरे ने जहां बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने का आग्रह किया था तो वहीं शिंदे खेमे ने महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरी सीताराम जरीवाल को हटाने के लिए नोटिस दिया था जो सदन के समक्ष लंबित था। जेठमलानी ने तर्क दिया कि नबाम रेबिया फैसले में सुधार के लिए पुनर्विचार करने और बड़ी पीठ को मामला भेजने की कोई जरूरत नहीं है।

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