नई दिल्ली: 12 जनवरी 1863 को जन्मे स्वामी विवेकानंद ने अपने प्रखर ज्ञान से पूरे विश्व में भारतीय अध्यात्मिकता का जबररदस्त प्रचार किया था। अमेरिका के शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म संसद में दुनिया के सभी धर्मों के प्रतिनिधी आए थे और स्वामी विवेकानंद इसमें सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। स्वामीजी ने ऐसा यादगार भाषण दिया कि भारत की अतुल्य अध्यात्मिक विरासत और ज्ञान का डंका बज गया। बोस्टन से करीब 65 किलोमीटर दूर समुद्र किनारे बसे एक गांव के निवासी आज उन्हें एक ऐसे हिंदू सन्यासी के रूप में याद करते हैं, जिनकी बुद्धिमता और ज्ञान हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के किसी प्रोफेसर से भी ज्यादा था।
ऐतिहासिक एनिसक्वाम विलेज चर्च की पादरी सुए कोहलर-आर्सेनॉल्ट ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि उन्होंने (स्वामी विवेकानंद) यहां जो छाप छोड़ी वह ऐसे किसी व्यक्ति की थी जिसकी संस्कृति बहुत अलग है, जिसका धर्म बहुत अलग है लेकिन उनकी बुद्धिमता, उनका ज्ञान हार्वर्ड के किसी प्रोफेसर से भी कहीं ज्यादा था।’’
जिस डेस्क से भाषण दिया था, वही एकमात्र निशानी बची
स्वामी विवेकानंद ने 27 अगस्त 1893 को अमेरिकी धरती पर अपना पहला भाषण इसी गिरजाघर में दिया था। उन्होंने अगस्त 1893 को रविवार के दिन खचाखच भरे गिरजाघर में जिस डेस्क से भाषण दिया था, वह उस ऐतिहासिक दिन की संभवत: एकमात्र निशानी बची है लेकिन उनका भाषण इस गांव में गूंजता रहता है और निवासियों को लगता है कि वे इतिहास का हिस्सा हैं।
हार्वर्ड के एक प्रोफेसर के निमंत्रण पर चर्च आए थे विवेकानंद
एक सवाल पर कोहलर-आर्सेनॉल्ट ने कहा, ‘‘मेरी समझ यह है कि वह भारत, उसकी संस्कृति और परंपराओं की एक तस्वीर प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्होंने यहां धर्म के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा बल्कि जीवनशैली के बारे में कहा था।’’ उनके अनुसार, स्वामी विवेकानंद हार्वर्ड के एक प्रोफेसर के निमंत्रण पर इस गांव में आए थे। बोस्टन में एक रेल यात्रा के दौरान इस प्रोफेसर की विवेकानंद से फौरन दोस्ती हो गई थी। हार्वर्ड के प्रोफेसर जॉन हेनरी राइट का इस गांव में एक घर था।
शिकागो जाने के लिए विवेकानंद के पास नहीं था पैसे
आपस में बातचीत से प्रोफेसर राइट को मालूम चला कि स्वामी विवेकानंद के पास बोस्टन से शिकागो जाने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था, इसलिए उन्होंने उन्हें एनिसक्वाम आमंत्रित किया ताकि वह ग्रामीणों को संबोधित कर सकें। साथ ही, वह इस अवसर का इस्तेमाल शिकागो की यात्रा के लिए धन एकत्रित करने के तौर पर कर सकें। शिकागो में ऐतिहासिक भाषण के एक महीने बाद स्वामी विवेकानंद ने हार्वर्ड के प्रोफेसर को पत्र लिखा था और उन्हें ‘‘डियर अध्यापकजी’’ कहकर संबोधित किया था।
जिन 2 घरों में स्वामीजी ठहरे, वे अब भी मौजूद
एनिसक्वाम ऐतिहासिक सोसायटी के पास उपलब्ध इस पत्र की प्रति के अनुसार, स्वामी विवेकानंद ने प्रोफेसर राइट से उन्हें पहले ही पत्र न लिखने को लेकर खेद जताया क्योंकि वह शिकागो के भाषण को लेकर व्यस्त थे। इस गिरजाघर में हर महीने अच्छी-खासी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। साल में एक बार भारतीय-अमेरिकी समुदाय के लोग यहां एकत्रित होकर स्वामी विवेकानंद के पहले भाषण का जश्न मनाते हैं। स्वामी विवेकानंद इस गांव की यात्रा के दौरान जिन दो घरों में ठहरे थे, वे अब भी वहां मौजूद हैं।